Wednesday, April 10, 2019

जिमा का तरीक़ा और इसके चंद आदाब व मसाइल

जिमा का तरीक़ा और इसके चंद आदाब मसाइल
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मक़बूल अहमद सलफ़ी
इस्लामिक दअ्वह सेंटर, शुमाली ताइफ़ (मिस्रह)

हिन्दी: अक़ील अहमद औरंगाबादी

दीने इस्लाम इन्सानी ज़िंदगी के तमाम तक़ाज़े -हुस्न ख़ूबी पूरा करता है बल्कि ज़िंदगी के तमाम उमूर के लिए पाकीज़ा उसूल और फ़ितरी निज़ाम पेश करता है। अल्लाह तआला हक़ बात कहने से नहीं शरमाता, उसने हमें अपने पैग़म्बर के ज़रिए ज़िंदगी की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात बतला दी। निकाह और बीवी से जिमा शर्मगाह की हिफ़ाज़त के साथ अफ़्ज़ाइशे नस्ल का सबब है फिर अल्लाह इतनी बड़ी बात कैसे नहीं बतलाता, यह भी हमें बतला दिया। आज हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं इसमें बुराई फ़ैशन और बे-हयाई आम सी बात हो गई है। अल्लाह ने हमें कुफ़्र ज़लालत से निजात देकर ईमान हिदायत की तौफ़ीक़ बख़्शी है, हमें हमेशा अपना क़दम बढ़ाने से पहले सोचना है कि कहीं कोई ग़लती तो नहीं हो रही है, हर हर क़दम फूंक फूंक कर उठाना है।
पैदाइश के बाद जब कोई जवानी की दहलीज़ पे क़दम रखता है तो उसे फ़ितरी सुकून हासिल करने के लिए शरीके हयात की ज़रूरत पेश आती है, इस्लाम ने शरीके हयात बनाने के लिए निकाह का पाकीज़ा निज़ाम पेश किया है। निकाह से इन्फ़िरादी और समाजी दोनों सतह पे फ़साद बिगाड़ का उन्सुर ख़त्म हो जाता है और घर से लेकर समाज तक एक सॉलेह मुआशरे की तामीर होती है
निकाह करके दो अजनबी आपसी प्यार मुहब्बत में इस क़द्र डूब जाते हैं जहां अजनबिय्यत अनक़ा और अपनाइयत क़दीम रिश्ता नज़र आता है। मियाँ बीवी एक दूसरे का लिबास बन जाते हैं, पाकीज़ा ताल्लुक़ यानी अक़्दे निकाह के बाद आपस की सारी अजनबिय्यत और सारा पर्दा उठ जाता है गोया दोनों एक जां दो क़ालिब हो जाते हैं। यह अल्लाह का बन्दों पर बड़ा अहसान है। मियाँ बीवी के जिन्सी मिलाप को अरबी में जिमा और उर्दू में हमबिस्तरी से तअ्बीर करते हैं। जिस तरह इस्लाम ने निकाह का पाकीज़ा निज़ाम दिया है इसी तरह जिमा के भी साफ़ सुथरे रहनुमा उसूल दिए हैं, इन उसूलों की जानकारी हर मुस्लिम मर्द ख़ातून पर ज़रूरी है। सुतूर ज़ेल में जिमा का तरीक़ा और इससे मुताल्लिक़ आदाब मसाइल बयान कर रहा हूं।
यहूदियों का ख़याल था कि बीवी की अगली शर्मगाह में पीछे से जिमा करने से लड़का भैंगा पैदा होगा, अल्लाह ने इस ख़याल की तरदीद करते हुए फ़रमाया:
نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَّكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّىٰ شِئْتُمْ
तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियां हैं, लिहाज़ा तुम अपनी खेतियों में जिधर से चाहो आओ। (अल-बक़रा:223)
इस आयत का मतलब यह है कि बीवी की अगली शर्मगाह में जिस तरह से चाहें जिमा कर सक्ते हैं, शौहर के लिए बीवी की अगली शर्मगाह ही हलाल है और पिछली शर्मगाह में वती करना हराम है चुनांचे इस बात को अल्लाह ने इस आयत से पहले बयान किया है। अल्लाह का फ़रमान है:
وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْمَحِيضِ ۖ قُلْ هُوَ أَذًى فَاعْتَزِلُوا النِّسَاءَ فِي الْمَحِيضِ ۖ وَلَا تَقْرَبُوهُنَّ حَتَّىٰ يَطْهُرْنَ ۖ فَإِذَا تَطَهَّرْنَ فَأْتُوهُنَّ مِنْ حَيْثُ أَمَرَكُمُ اللَّهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ
आप से हैज़ के बारे में सवाल करते हैं कह दीजिए कि वह गन्दगी है हालते हैज़ में औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक ना हो जाएं इनके क़रीब ना जाओ, हाँ जब वह पाक हो जाएं तो उनके पास जाओ जहां से अल्लाह ने तुम्हें इजाज़त दी है अल्लाह तौबा करने वालों को और पाक रहने वालों को पसन्द फ़रमाता है। (अल-बक़रा: 222)
यहां पर अल्लाह हुक्म दे रहा है कि हैज़ की हालत में बीवी से जिमा ना करो और जब हैज़ से पाक होकर ग़ुस्ल कर ले तो उसके साथ उस जगह से जिमा करो जिस जगह जिमा करने की इजाज़त दी है। हैज़ अगली शर्मगाह से आता है, हैज़ का ख़ून आने तक जिमा मम्नूअ् है और जब हैज़ बंद हो जाए तो इसी जगह जिमा करना है जहां से ख़ून आ रहा था

"निसाउकुम हर्सुल् लकुम्" की तफ़्सीर सहीह अहादीस से भी मुलाहिज़ा फ़रमा लें ताकि बात मज़ीद वाज़ेह हो जाए। रावी हदीस इब्न अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा बयान करते हैं जब यह आयत नाज़िल हुई:
(نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أنَّى شِئْتُمْ)أي مُقبِلاتٍ ومُدبِراتٍ ومُستَلقِياتٍ يعني بذلِكَ مَوضعَ الولَدِ
तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेती हैं लिहाज़ा तुम जिस तरीक़े से चाहो उन से जिमा करो यानी ख़्वाह आगे से ख़्वाह पीछे से ख़्वाह लिटा कर यानी औलाद वाली जगह से। (सहीह अबी दाऊद:2164)

एक दूसरी रिवायत में इब्न अब्बास ही से मरवी है
نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُمْ أقبِلْ وأدبِرْ، واتَّقِ الدُّبرَ والحَيضةَ
तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेती हैं लिहाज़ा तुम जिस तरीक़े से चाहो इन से जिमा करो ख़्वाहबीवी से आगे से सोहबत करो चाहे पीछे की तरफ़ से करो मगर पिछली शर्मगाह से बचो और हैज़ की हालत में जिमा करने से बचो। (सहीह अत-तिर्मिज़ी:2 98 0)

आज के पुर फ़ितन दौर में मियाँ बीवी को इस्लाम की यह बात जाननी चाहिए और इसे ही अमली ज़िंदगी में नाफ़िज़ करना चाहिए, जो लोग फ़हश वीडियोज़ देख कर ग़लत तरीक़े से मनी ख़ारिज करते हैं इसकी ज़िंदगी से हया निकल जाती है, लम्हा बह लम्हा बे-हयाई की राह चलने लगता है। याद रखें, बीवी से इस्लामी तरीक़े से जिमा करना भी बाइसे सवाब है। नबी का फ़रमान है:


وفي بُضْعِ أَحَدِكُمْ صَدَقَةٌ، قالوا: يا
رَسولَ اللهِ، أَيَأتي أَحَدُنَا شَهْوَتَهُ وَيَكونُ له فِيهَا أَجْرٌ؟ قالَ:
أَرَأَيْتُمْ لو وَضَعَهَا في حَرَامٍ أَكانَ عليه فِيهَا وِزْرٌ؟ فَكَذلكَ إذَا
وَضَعَهَا في الحَلَالِ كانَ له أَجْرٌ




और (बीवी से जिमा करते हुए) तुम्हारे उज़ू में सदक़ा है। सहाबा किराम ने पूछा: ऐ अल्लाह के रसूल ! हम में से कोई अपनी ख़्वाहिश पूरी करता है तो क्या इस में भी अज्र मिलता है? आप ﷺ ने फ़रमाया: बताओ अगर वह यह (ख़्वाहिश) हराम जगह पूरी करता तो क्या उसे इसका गुनाह होता? इसी तरह जब वह इसे हलाल जगह पूरी करता है तो उसके लिए अज्र है। (सहीहमुस्लिम:1006)




अब नीचे जिमा के चंद आदाब व मसाइल ज़िक्र किए जाते हैं


1) बीवी से जिमा इफ़्फ़त व अस्मत की हिफ़ाज़त, अफ़्ज़ाइशे नस्ल और हराम काम से बचने की निय्यत से हो, ऐसी सूरत में अल्लाह ना सिर्फ़ जिमा पे अज्र देगा बल्कि नेक औलाद से भी नवाज़ेगा और दुन्यावी व उख़रवी बरकतों से नवाज़ेगा


2) जिमा शहवत रानी नहीं है बल्कि ज़ौजैन के लिए सुकूने क़ल्ब और राहते जां है, इसलिए क़ब्ल अज़ जिमा शौहर बीवी से ख़ुश तबई की बात करे और जिमा के लिए ज़हनी तौर पर और जिस्मानी तौर पर राज़ी करे ।




3) जिमा से क़ब्ल यह दुआ पढ़ना मस्नून है:



بسْمِ اللَّهِ، اللَّهُمَّ جَنِّبْنَا
الشَّيْطَانَ وجَنِّبِ الشَّيْطَانَ ما رَزَقْتَنَا


ऐ अल्लाह! हमें शैतान से अलाहिदा रख और तू जो औलाद हमें इनायत फ़रमाए उसे भी
शैतान से दूर रख




"फिर अगर उन्हें बच्चा दिया गया तो शैतान उसे कोई नुक़्सान नहीं पहुंचा सकेगा। (सहीह अल-बुख़ारी: 3271)




4) जिमा की जगह आवाज़ सुनने वाला और देखने वाला कोई ना हो यानी ढकी छुपी जगह हो और जिमा की हद तक शर्मगाह खोलना काफ़ी है ताहम एक दूसरे को देखना और मुकम्मल बरहना होना आपस में जाइज़ है, जिस हदीस में मज़्कूर है कि जिमा के वक़्त बीवी की शर्मगाह देखने से अंधे पन की बीमारी लाहिक़ होती है; इसे शेख़ अल्बानी ने मौज़ू हदीस क़रार दिया है। और इसी तरह वह सारी अहादीस भी ज़ईफ़ हैं जिन में मज़्कूर है कि सय्यदह आइशा रज़ियल्लाहू अन्हा और रसूलुल्लाह ﷺ ने कभी एक दूसरे की शर्मगाह नहीं देखें



5) ब-हालते इहराम और ब-हालते रोज़ा जिमा मम्नूअ् है, बाक़ी दिन व रात के किसी हिस्से में जिमा कर सक्ते हैं। हालते हैज़ और हालते निफ़ास में सिर्फ़ जिमा करना मना है मगर जिमा के इलावा बीवी से लज़्ज़त अन्दोज़ होना जाइज़ है। अगर किसी ने हैज़ की हालत में जिमा कर लिया तो एक दीनार या निस्फ़ देना सदक़ा करना होगा, साथ ही अल्लाह से सच्ची तौबा करे ताकि आइन्दा अल्लाह का हुक्म तोड़ कर मासियत का इर्तिकाब ना करे। यही हुक्म निफ़ास की हालत में जिमा का है अलबत्ता सहीह क़ौल की रौशनी में मुस्तहाज़ह से जिमा करना जाइज़ है




6) दौराने हमल बीवी से जिमा करना जाइज़ है ताहम शौहर को इस कन्डीशन में हमेशा बीवी की नफ़्सियात, सेहत और आराम का ख़याल रखना चाहिए। हमल की मशक़्क़त बहुत सख़्त है, क़ुरआन ने इसे दुख पर दुख कहा है। इसलिए बसा औक़ात डॉक्टर इस दौराने जिमा करने से शौहर को मना करते हैं लिहाज़ा इस सिलसिले में तिब्बी मशवरे पर अमल किया जाए, ख़ुसूसन हमल के आख़िरी अय्याम काफ़ी दुशवार गुज़ार होते हैं इन दिनों जिमा करना पुर-ख़तर साबित हो सक्ता है



7) मुतल्लक़ा रजइय्या की इद्दत में जिमा करना रजअत है कि नहीं इस पे अहले इल्म में मुख़्तलिफ़ अक़वाल हैं, इनमें क़ौल मुख़तार यह है कि अगर शौहर ने रुजूअ् की निय्यत से जिमा किया है तो रुजूअ् साबित होगा और अगर बग़ैर रुजूअ् की निय्यत से जिमा कर लिया तो इससे रुजूअ् नहीं होगा मसलन शहवत उभर जाने से इद्दत में जिमा कर लेना



8)लोग जिमा के दौरान शहवत की बातें करने से मुताल्लिक़ सवाल करते हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है, ना ही ऐब की बात है, हाँ फ़हश और बेहूदह बातें जिस तरह आम हालात में मम्नूअ् हैं इसी तरह दौराने जिमा भी मम्नूअ् होंगी




9) जिमा से क़ब्ल शहवत भड़काने के लिए जिन्सी क़ुव्वत वाली अदवियात का इस्तिमाल जिस्म के लिए नुक़्सानदह है लिहाज़ा इस चीज़ से इज्तिनाब करें, हाँ किसी आदमी में जिन्सी कमज़ोरी हो तो माहिर तबीब से इसका इलाज कराएं इसमें कोई मुज़ाइक़ा नहीं है



10) बीवी की अगली शर्मगाह में जिमा करना हैज़ व निफ़ास से पाकी की हालत में जाइज़ है और जिमा करने के लिए बीवी से बोस व किनार होना, ख़ुश तबई करना, जिमा के लिए तय्यार करने के वास्ते आज़ाए बदन ब-शुमूले शर्मगाह छूना या देखना जाइज़ व हलाल है। फिर अगली शर्मगाह में जिमा के लिए जो कैफ़िय्यत व हैअत इख़्तियार की जाए तमाम कैफ़ियात जाइज़ हैं। याद रहे जिमा की बीवी शौहर से इनकार करे ख़्वाहिश बेदार होने और इसका मुतालबा करने पर ना शौहर बीवी से इनकार करे और ना ही



11) शौहर के लिए बीवी की शर्मगाह छूने और देखने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन उसे चूमना बे-हयाई है। इसी तरह बीवी के लिए मर्द की शर्मगाह छूने और देखने में कोई हर्ज नहीं है मगर उसे है कि औरत की शर्मगाह चूमना और मूँह सेक्स (ओरल सेक्स) करना सरापा बे-हयाई है और चूमना और मूँह में दाख़िल करना बे-हयाई है। इन दो बातों का एक जुमले में ख़ुलासा यह इस्लाम की पाकीज़ा तालीमात के ख़िलाफ़ है



12) मियाँ बीवी का एक दूसरे से ग़ैर फ़ितरी तरीक़े से मनी ख़ारिज करवाना भी मुताद्दिद जिस्मानी नुक़सानात के साथ बे-हया लोगों का रास्ता इख़्तियार करना है, मोमिन हर काम में हया का पहलू मद्दे-नज़र रखता है। उमूमन शौहर अपनी बीवी को ग़ैर फ़ितरी तरीक़ा मुबाशरत अपनाने और बे-हयाई का उस्लूब इख़्तियार करने की दावत देता है ऐसी औरत के सामने अहेदे रसूल की उस अन्सारी औरत का मुबाशरत करना चाहा, जो अन्सारी के यहां मारूफ़ ना था तो उसकी बीवी ने इस बात से इनकार किया और कहा वाक़िया होना चाहिए जिसके क़ुरैशी यानी मुहाजिर शौहर ने उससे अपने यहां के तरीक़े से हम सिर्फ़ एक ही अंदाज़ से जिमा के क़ाइल हैं लिहाज़ा वही तरीक़ा अपनाओ या मुझ से दूर रहो। यहां तक कि बात रसूलुल्लाह तक पहुंच गई और उस वक़्त क़ुरआन की आयत (निसाउकुम हर्सुल् लकुम् फ़अ्तु हर्सकुम् अन्नी शिअ्तुम) नाज़िल हुई जिसकी तफ़्सीर ऊपर गुज़र चुकी है। वाक़िए की तफ़्सील देखें:(सहीह अबी दाऊद:2164)



13) नबी का फ़रमान है कि जो शख़्स अपनी बीवी की दुबुर में आता है, वह मलऊन है (सहीह अबी दाऊद: 2162)। लिहाज़ा कोई मुसलमान लानती काम करके ख़ुद को क़हरे इलाही का सज़ावार ना बनाए। किसी से ऐसा घिनौना काम सरज़द हो गया हो तो वह फ़ौरन रब की तरफ़ इल्तिफ़ात करे और अल्लाह से तौबा करके गुनाह माफ़ करा ले। जहां तक लोगों का यह ख़याल करना कि बीवी की पिछली शर्मगाह में जिमा करने से निकाह बातिल हो जाता है सो ऐसी बात की कोई हक़ीक़त नहीं है




14) एक ही रात में दोबारा जिमा करने से पहले अगर मयस्सर हो तो ग़ुस्ल कर लिया जाए, या वुज़ू कर लिया जाए। बग़ैर वुज़ू के भी दोबारा जिमा कर सक्ते हैं, क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ एक ग़ुस्ल से कई अज़वाज से मुबाशरत फ़रमाते थे




15) मर्द की शर्मगाह, औरत की शर्मगाह में दाख़िल होने से औरत व मर्द दोनों पर ग़ुस्ल वाजिब हो जाता है चाहे मनी का इन्ज़ाल हो या ना हो। हालते जनाबत में सोया जा सकता है ताहम फ़ज्र से पहले या जो हालते जनाबत में क़ुरआन की तिलावत नहीं कर सक्ते मगर ज़िक्र व अज़्कार, दुआ व सलाम, काम काज, बात चीत, खना पीना सब वक़्त हो उस नमाज़ के वास्ते ग़ुस्ल कर ले ताकि बिला ताख़ीर वक़्त पे नमाज़ पढ़ सके। जाइज़ हैं हत्ता कि सहरी भी खा सकते हैं


16) जब जिमा की हालत में अज़ान होने लगे या इक़ामत की आवाज़ सुनाई दे तो इस अमल को जारी रखने में कोई हर्ज नहीं ताहम इससे जल्द फ़राग़त हासिल करके और ग़ुस्ल करके नमाज़ अदा करें। याद रहे अज़ान सुनने के बाद भी क़स्दन से ग़फ़लत है। जहां तक अज़ान के जवाब का मस्अला है तो यह सब पर वाजिब नहीं बल्कि बिस्तर पर लेटे रहना हत्ता कि इक़ामत होने लगे तब जिमा करना हमारी कोताही और नमाज़ व किनार के दौरान जवाब देना चाहें तो देने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन जिमा के फ़र्ज़े किफ़ाया और बड़े अज्र व सवाब का हामिल है इसलिए मियाँ बीवी से बात चीत या बोस वक़्त अज़ान का जवाब देने से उलमा ने मना किया है, जब इस अमल से फ़ारिग़ हो जाएं तो बक़िया कलिमात का जवाब दे सकते हैं




17) औलाद के दरमियान ज़रूरत के तहत वक़्फ़ा करने की निय्यत से जिमा करते हुए मनी शर्मगाह के बाहर ख़ारिज करना जाइज़ है, शौक़ियह ऐसा करने से बहरसूरत बचना चाहिए क्योंकि निकाह का अहम मक़्सद अफ़्ज़ाइशे नस्ल है




18) मियाँ बीवी की ख़लवत और जिमा की बातें लोगों में बयान करना बे-हयाई की अलामत है, रसूलुल्लाह ﷺ ने इस अमल से उम्मत को मना फ़रमाया है। इस बात से इन बे-हयाओं को नसीहत लेना चाहिए जो जिमा की तस्वीर या वीडियो बनाते हैं फिर उसे लोगों में फैलाते हैं। नऊज़ु बिल्लाह कितने मलऊन हैं फ़हश वीडियोज़ बनाने, फैलाने और देखने वाले। नबी का फ़रमान है:




كلُّ أمَّتي مُعافًى إلَّا المُجاهِرينَ ،
وإنَّ منَ المُجاهرةِ أن يعمَلَ الرَّجلُ باللَّيلِ عملًا ، ثُمَّ يصبِحَ وقد
سترَه اللَّهُ ، فيقولَ : يا فلانُ ، عمِلتُ البارحةَ كذا وَكذا ، وقد باتَ يسترُه
ربُّهُ ، ويصبِحُ يَكشِفُ سترَ اللَّهِ عنهُ




मेरी तमाम उम्मत व माफ़ कर दिया जाएगा मगर जो ऐलानिया गुनाह करते हैं। अलानिय्यह गुनाह करने का मतलब यह है कि एक शख़्स रात के वक़्त गुनाह करता है बावजूदयकि अल्लाह तआला ने उसके गुनाह पर पर्दा डाला होता है लेकिन सुब्ह होते ही वह कहने लगता है: ऐ फ़ुलां! मैंने रात फ़ुलां फ़ुलां बुरा काम किया था, रात गुज़र गई थी और उसके रब ने उसका गुनाह छुपा रखा था जब सुब्ह हुई तो वह ख़ुद पर दिए गए अल्लाह के पर्दे खोलने लगा। (सहीह अल-बुख़ारी:60 69 )



अल्लाह तआला हमारे अन्दर इस्लामी ग़ैरत हमिय्यत पैदा कर दे, हया की दौलत से माला-माल कर दे, बे-हयाई से कोसों मील दूर कर दे और मरते दम तक इस्लाम की पाकीज़ा तालीमात पे इख़्लास के साथ अमल करते रहने की तौफ़ीक़ बख़्शे। आमीन

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