मकबूल अहमद सलफी
हर कौम अपने
कैलेंडर के हिसाब से नए साल के पहले दिन का बड़ा महत्व देती है और इस दिन को बड़ी
धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि यह पहला दिन अन्य दिनों से कुछ अलग नहीं होता।
ऐसा नहीं है कि नए साल के पहले दिन में सिर्फ खुशी ही खुशी होती है। देखा जाता है
गम में डुबे लोग आज भी दुखी होते हैं। नए साल पे भी लोगों को मौत आती है।
एकसिडेन्ट होता है। दुख और कठिनाइयों पेश आते हैं तो आज के दिन खुशी के तरीके
मनाने का कारण व प्रोत्साहन क्या है?
इसके जवाब भले ंगठरनए सीई वर्ष के आगमन पे उपमहाद्वीप में अजीब किस्म का माहौल पाया जाता है, इस माहौल को हम इस्लामी परिप्रेक्ष्य में देखते हैं।
इसके जवाब भले ंगठरनए सीई वर्ष के आगमन पे उपमहाद्वीप में अजीब किस्म का माहौल पाया जाता है, इस माहौल को हम इस्लामी परिप्रेक्ष्य में देखते हैं।
1⃣निया साल और Happy New Year:
पहली जनवरी के आने से कई दिन पहले से मेसेज, कार्ड और मौखिक रूप पे हिप्पी न्यू ईयर (Happy New Year) के शब्दों जारी व सारी जाते हैं। स्तुति सीई साल से हटकर मुसलमानों का अपना अरबी कैलेंडर पाया जाता है और यह चंद्र / अरबी कलैंडरसषाबह किराम के ज़माने से ही पाया जाता है, उनके जीवन में भी नया हिजरी वर्ष आया मगर उन्होंने एक दूसरे को बधाई नहीं दी जो बात की दलील है कि नए साल की बधाई देना खिलाफ संत है। इसलिए किसी मुसलमान के लिए उचित नहीं कि किसी को हिप्पी नीवाेयरका कार्ड भेजने, या मेसेज लिखकर हिप्पी नीवाेयर की बधाई दे या भाषा से किसी को हिप्पी नीवाेयर कहे।
पहली जनवरी के आने से कई दिन पहले से मेसेज, कार्ड और मौखिक रूप पे हिप्पी न्यू ईयर (Happy New Year) के शब्दों जारी व सारी जाते हैं। स्तुति सीई साल से हटकर मुसलमानों का अपना अरबी कैलेंडर पाया जाता है और यह चंद्र / अरबी कलैंडरसषाबह किराम के ज़माने से ही पाया जाता है, उनके जीवन में भी नया हिजरी वर्ष आया मगर उन्होंने एक दूसरे को बधाई नहीं दी जो बात की दलील है कि नए साल की बधाई देना खिलाफ संत है। इसलिए किसी मुसलमान के लिए उचित नहीं कि किसी को हिप्पी नीवाेयरका कार्ड भेजने, या मेसेज लिखकर हिप्पी नीवाेयर की बधाई दे या भाषा से किसी को हिप्पी नीवाेयर कहे।
2⃣निया साल और Picnic:
पहली जनवरी लोग गांव / शहर से निकल कर रेगिस्तान और जंगल में जाकर संयुक्त दावत का आयोजन करते हैं। इसमें खाने पीने के साथ शराब, आतिशबाजी और नृत्य और सरोद की महफिल की स्थापना की जाती है। तथा पश्चिमी सभ्यता की नकल करते हुए पुरुषों के साथ युवा लड़कियों भी पिकनिक में शामिल होती हैं। पिकनिक दरअसल मौज मस्ती का दूसरा नाम है। इसमें पाए जाने वाले मामलों इस्लाम विरोधी हैं। इस अवसर पर सभी मुसलमान श्रमिकों, महिलाओं को समझाता हूं कि इस प्रकार की दावत और पिकनिक से बचें। केवल घर के जिम्मे दरांती से अनुरोध करता हूँ कि अपने बच्चों को पिकनिक में भाग लेने की अनुमति न दें।
पहली जनवरी लोग गांव / शहर से निकल कर रेगिस्तान और जंगल में जाकर संयुक्त दावत का आयोजन करते हैं। इसमें खाने पीने के साथ शराब, आतिशबाजी और नृत्य और सरोद की महफिल की स्थापना की जाती है। तथा पश्चिमी सभ्यता की नकल करते हुए पुरुषों के साथ युवा लड़कियों भी पिकनिक में शामिल होती हैं। पिकनिक दरअसल मौज मस्ती का दूसरा नाम है। इसमें पाए जाने वाले मामलों इस्लाम विरोधी हैं। इस अवसर पर सभी मुसलमान श्रमिकों, महिलाओं को समझाता हूं कि इस प्रकार की दावत और पिकनिक से बचें। केवल घर के जिम्मे दरांती से अनुरोध करता हूँ कि अपने बच्चों को पिकनिक में भाग लेने की अनुमति न दें।
3⃣निया साल ाोरआतश फैलाव:
नए साल के आगमन पे आतिशबाजी का बड़ा भयानक दृश्य देखने को मिलता है। घर पर, गली में, चौराहों पे, उत्सव और आम गज़रगाहों पे इतना आतिशबाजी की जाती है कि इससे जाबजा दुर्घटनाओं पाए जाते हैं। यह आतिशबाजी में मुसलमानों को देखकर बहुत दुख होता है कि दीन मोहम्मद के नामलेवा काफिरों की नकल में उर्जा क्यों?
आतिशबाजी में फिजूलखर्ची, जाल और वित्तीय नुकसान का पहलू और काफिरों की नकली पाई जाती है जो नए साल के हिसाब से ही नहीं बल्कि हर अनुकूल यह हराम है।
नए साल के आगमन पे आतिशबाजी का बड़ा भयानक दृश्य देखने को मिलता है। घर पर, गली में, चौराहों पे, उत्सव और आम गज़रगाहों पे इतना आतिशबाजी की जाती है कि इससे जाबजा दुर्घटनाओं पाए जाते हैं। यह आतिशबाजी में मुसलमानों को देखकर बहुत दुख होता है कि दीन मोहम्मद के नामलेवा काफिरों की नकल में उर्जा क्यों?
आतिशबाजी में फिजूलखर्ची, जाल और वित्तीय नुकसान का पहलू और काफिरों की नकली पाई जाती है जो नए साल के हिसाब से ही नहीं बल्कि हर अनुकूल यह हराम है।
4⃣नाज्ाल और अंधविश्वास:
नए साल को लेकर कई सारी अंधविश्वास पाई जाती हैं। कुछ संबंध तो रीति-रिवाज से मगर कुछ अंधविश्वास सीधे विश्वासों से टकराते हैं। और लगभग हरमलक में अजीबोग़रीब प्रकार की परंपराओं पाई जाती है। भारत तो चमत्कार के लिए वैसे भी दुनिया भर में प्रसिद्ध निकलने वाली है।
कहीं नए साल के आगमन पे घर के पुराने फर्नीचर को निकालकर नए फर्नीचर जोड़ दिया जाता है तो कहीं पुराने सामान से बदफाली ली जाती है और इसे फेंक कर नया सामान लाया जाता है। कहीं कचड़ा घर से निकालना दुर्भाग्य निकालने के बराबर माना जाता है। तो कहीं पे सिक्का उछालकर कसमतों का फैसला किया है। इस्लाम में इस प्रकार की परंपरा और अंधविश्वास और बदफाली की कोई गुंजाइश नहीं।
नए साल को लेकर कई सारी अंधविश्वास पाई जाती हैं। कुछ संबंध तो रीति-रिवाज से मगर कुछ अंधविश्वास सीधे विश्वासों से टकराते हैं। और लगभग हरमलक में अजीबोग़रीब प्रकार की परंपराओं पाई जाती है। भारत तो चमत्कार के लिए वैसे भी दुनिया भर में प्रसिद्ध निकलने वाली है।
कहीं नए साल के आगमन पे घर के पुराने फर्नीचर को निकालकर नए फर्नीचर जोड़ दिया जाता है तो कहीं पुराने सामान से बदफाली ली जाती है और इसे फेंक कर नया सामान लाया जाता है। कहीं कचड़ा घर से निकालना दुर्भाग्य निकालने के बराबर माना जाता है। तो कहीं पे सिक्का उछालकर कसमतों का फैसला किया है। इस्लाम में इस प्रकार की परंपरा और अंधविश्वास और बदफाली की कोई गुंजाइश नहीं।
✅नाज्ाल पे हम क्या करें?
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यहां यह सवाल उठता है कि अगर हम नए साल के आगमन पे उपरोक्त मामलों अंजाम नहीं दें तो हमें नए साल के आगमन पे क्या करना चाहिए?
इस सवाल के संबंध में सबसे पहले यह बताना चाहता हूं कि हम लोग मुसलमान हैं और मुसलमानों का नया साल सीई नहीं हिजरी है। मानो हम पहली जनवरी से कोई सरोकार नहीं यदि सरोकार है तो इस्लामी साल है।
इस्लाम में नए साल के आगमन मुहर्रम से होती है। और eyelashes चार पवित्र महीनों में से एक महीना है।
हमें मुहर्रम के आगमन पे पहले यह चिंता है कि यह दुनिया नश्वर है, यहाँ की हर्षिता नश्वर है, हमें भी एक न एक दिन यहाँ से जाना है। इस कल्पना से हमारे अंदर यह भावना जागज़ें होगा कि हम जीवन का एक कीमती साल खो दिया। साथ ही यह मषासबह भी करना है कि पिछले महीनों में हम क्या खता हुई, क्या पाप हुए और कौन सा अच्छा काम हमने सोचा और नहीं कर सका। यह प्रशासन के साथ अगले साल के लिए धर्म के रास्ते चलने के लिए पूरी योजना। अगर हम धर्म के रास्ते चलने के लिए कोई ठोस कार्य योजना तैयार न किया तो एक साल यूं ही हमारी उम्र से कम होता चला जाएगा और पैर में बुराई के सिवा कुछ न होगा। और जब उम्र सभी करके निर्माता हककीक मिलेंगे तो कफ खेद मिलना होगा।
इससे पहले कि अफसोस करनी अपना दामन नेकियों से भर लेते हैं।
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यहां यह सवाल उठता है कि अगर हम नए साल के आगमन पे उपरोक्त मामलों अंजाम नहीं दें तो हमें नए साल के आगमन पे क्या करना चाहिए?
इस सवाल के संबंध में सबसे पहले यह बताना चाहता हूं कि हम लोग मुसलमान हैं और मुसलमानों का नया साल सीई नहीं हिजरी है। मानो हम पहली जनवरी से कोई सरोकार नहीं यदि सरोकार है तो इस्लामी साल है।
इस्लाम में नए साल के आगमन मुहर्रम से होती है। और eyelashes चार पवित्र महीनों में से एक महीना है।
हमें मुहर्रम के आगमन पे पहले यह चिंता है कि यह दुनिया नश्वर है, यहाँ की हर्षिता नश्वर है, हमें भी एक न एक दिन यहाँ से जाना है। इस कल्पना से हमारे अंदर यह भावना जागज़ें होगा कि हम जीवन का एक कीमती साल खो दिया। साथ ही यह मषासबह भी करना है कि पिछले महीनों में हम क्या खता हुई, क्या पाप हुए और कौन सा अच्छा काम हमने सोचा और नहीं कर सका। यह प्रशासन के साथ अगले साल के लिए धर्म के रास्ते चलने के लिए पूरी योजना। अगर हम धर्म के रास्ते चलने के लिए कोई ठोस कार्य योजना तैयार न किया तो एक साल यूं ही हमारी उम्र से कम होता चला जाएगा और पैर में बुराई के सिवा कुछ न होगा। और जब उम्र सभी करके निर्माता हककीक मिलेंगे तो कफ खेद मिलना होगा।
इससे पहले कि अफसोस करनी अपना दामन नेकियों से भर लेते हैं।
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